शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

नित्यानंद


परिचय -
20 अगस्त 1981 को पश्चिम बंगाल के बारुइपुर, दक्षिण चौबीस परगना के शिखरबाली गांव में जन्मे नित्यानंद गायेन की कवितायेँ और लेख सर्वनाम, कृतिओर, समयांतर, हंस, जनसत्ता, अविराम ,दुनिया इनदिनों, अलाव, जिन्दा लोग, नई धारा , हिंदी मिलाप, स्वतंत्र वार्ता, छपते –छपते, समकालीन तीसरी दुनिया, अक्षर पर्व, हमारा प्रदेश, कृषि जागरण आदि पत्र –पत्रिकाओं में प्रकाशित .
इनका काव्य संग्रह ‘अपने हिस्से का प्रेम’ (२०११) में संकल्प प्रकाशन से प्रकशित. कविता केंद्रित पत्रिका ‘संकेत’ का नौवां अंक इनकी कवितायों पर केंद्रित .इनकी कुछ कविताओं का नेपाली, अंग्रेजी, मैथिली तथा फ्रेंच भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है . फ़िलहाल हैदराबाद के एक निजी संस्थान में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन.


जो लोग हिंदी कविता के भविष्य का रोना रोते रहते हैं और उसके भविष्य को ले कर चिंतित रहते हैं उन्हें हमारे युवा कवियों की कवितायें जरूर पढ़नी चाहिए. तमाम निराशाओं के बीच भी एक आशा और उम्मीद इन युवाओं में साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है. नित्यानंद गायेन ऐसे ही एक कवि हैं जो हमारे समाज और प्रजातंत्र की विसंगतियों को जानते हैं और साफगोई से अपनी बातें रखते हैं. वे अपने उन प्रगतिशील कवियों की हकीकत भी जानते हैं जो हर वक्त प्रगतिशीलता का राग तो अलापते रहते हैं लेकिन मठाधीशी के जूनून में बाज नहीं आते अपनी सामंती हरकतों से. ऐसे ही कुछ प्रगतिशील कवि आजकल अपनी कविताओं की चोरी को ले कर बहुत फिक्रमंद हैं. अगर आपने सूरज, चाँद, सितारा, माँ, पिता, रोशनी, अन्धेरा किसी की भी कोई बात की तो फिर आपकी खैर नहीं, क्योकि यह सारे शब्द और इनसे सम्बंधित विचार तो वह कवि पहले ही अपने नाम पेटेंट करा चुका है और जाहिर सी बात है आप को उस विषय पर कविता लिखने का कोई अधिकार नहीं. देश की कोई भी घटना ऐसे प्रगतिशील कवि को अपनी समस्या के सामने तुच्छ लगती है.
बहरहाल हमारा यह युवा कवि आज की राजनीति खासकर चुप्पी की राजनीति को भलीभांति जानता-समझता है. चुप्पी के पीछे के जोड़-तोड़, दांव-पेंच और महत्वाकांक्षाओं को जानता है. और अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाते हुए बोल पड़ता है. तो आईये नित्यानंद के बोल को हम उनकी कविताओं के मार्फ़त ही सुनते हैं.  

नित्यानंद गायेन की कवितायें

१.होश में आने से पहले
दर्द,
उत्पीड़न,
गरीबी,
जैसे शब्द नही है उनके शब्दकोश में
ये सब महलों के वासिंदे हैं
फिर भी कभी –कभी
कर लेते हैं बात इन मुद्दों पर
भावावेश में हम भी आ जाते हैं
और हार जाती है
हिम्मत हमारी हर बार 
वे खेलते हैं
हमारी मूर्छित चेतना से
फिर होश में आने से पहले
बदल जाती है उनकी दुनिया
हम रह जाते अवाक..
हमारे कंठ से
नही फुट पाता विद्रोह का एक भी स्वर
ऐसा क्यों ....?


............................................
२.अपने अहं के साथ खड़े रहे हम
उनमे से कोई नही जानता
कहानी हमारे बिछड़ने की
कुछ ने गवाही दी तुम्हारे पक्ष में
कुछ मेरे हमदर्द बने
अपने अहं के साथ
खड़े रहे हम
जैसे नदी के दो किनारे
किसी ने नही की
हमारे मिलन की बात
बस मन ही मन हँसते रहे
हमने भी न लिया फिर विवेक से काम ...
...................................
३.चुप्पी की भी अपनी राजनीति है 

अन्याय
फिर अन्याय
उस पर भी ख़ामोशी

चुप्पी की भी अपनी राजनीति है
समझ रहे हैं हम

जो खामोश रहे इस दौर में
उतर आये अपने बचाव में 

मैं तोड़ रहा हूँ
अपनी ख़ामोशी
अब आपकी बारी है ...


४.प्रजातंत्र की नंगी तस्वीर

तुम्हारे हाथ उठे जब –जब
आम आदमी के बहाने
हमने देखी खुली आँखों से
प्रजातंत्र की नंगी तस्वीर

लूट हुई, दंगे हुए
बटवारा हुआ इंसानियत का
तुमने सिर्फ वोट बटोरे

फिर तुमने कमल खिलाया
कीचड़ का भी अपमान किया
आग लगाई
बस्तियां जलाई
देश में लहू की धार बहाई
दुहाई तुम्हारी दुहाई तुम्हारी


5. उदारवादी लोग
दिल्ली, मुंबई या फिर कोलकाता
यहाँ प्रगतिशील और उदारवादी लोगों की एक बड़ी भीड़ है
ये सभी लेखक या शिक्षक हैं
बहुत सम्मान है इनका, बड़ा नाम है समाज में
इन सबके घरों में कोई न कोई आता है
झाड़ू लगाने, बर्तन मांजने
रात का बचा हुआ खाना
फटे पुराने कपड़े
दान में देते हैं उन्हें
ये सभी उदारवादी लोग
बदले इन गरीब लोगों के बच्चों से
अपनी गाड़ियां धुलवाते हैं
क्रोध में दुत्कारते और गालियाँ भी दे देते हैं अक्सर
यहीं झलकती हैं उन सबकी प्रगतिशीलता ......

6. तुम्हारे फैलाये बाज़ार में

फैल रहा है
शहर का वजूद
गांव सिकुड़ रहे हैं
सीमेंट की चादर के नीचे
दब रही है मिट्टी की खुशबू
इसी शहर में मजदूर बने
मेरे देश के सुदूर ग्रामीण लोग

सड़ रहा है गेंहूँ
पिज़ा का हो रहा है विस्तार
छोड़ो गेंहुयाँ रंग
गोरा होने का क्रीम लगाओ
खान, बच्चन, तेंदुलकर ......
पानी पर नहीं सोचते
पेप्सी -कोला की
दे रहे हैं सलाह
लस्सी, छांछ में क्या रख्खा है ?
गुड़ नही अब कैड्बेरी है
मेहमानों के स्वागत में

असली और सम्पूर्ण पुरुष बनने के लिए
पहले रेमंड पहनिए
बापू ने तो गुजार दी पूरी जिंदगी
घुटनों तक धोती में ...

भूखे रहो
किन्तु फोन खरीदो
सरकार भी बाँट रही है
गरीबों को लैपटाप
भोजन –पानी और सुरक्षा
अब यहीं सर्च करो

तुम्हारे फैलाये बाज़ार में
रोज लूट रहा है
आम जन

सपने देखना अपराध नही
किन्तु सपने दिखा कर लूटना
बहुत संगीन जुर्म है
और जुर्म निरंतर जारी है
मेरे इस गरीब देश में ....

याद आ गये सुकरात
हमने सदियों तक ईश्वर गुलामी की
कभी भय से
कभी लोभ से
फिर भी पिघला नही उनका दिल
बीमारी में , आपदा में
हर पीड़ा में
मिन्नते की
सदियों बाद मालूम हुआ
वे बहरे हैं हमारे लिए
फूल ,माला , फल ,दूध
गहने कपड़े
सब चढाए
उनके मंदिर हो गये आलीशान
हम दीन के दीन ही रहे
मठ और सत्ता पर आसीन
दलालों ने कहा
बने रहो सेवक अच्छे फल के लिए
सड़कों के किनारे पड़े मिले हम
बेहाल -बेघर
बड़ी हिम्मत से ललकारा
आज सदियों बाद
कि स्वीकार नही तुम्हारी दासता
एक स्वर में चीख पड़े सभी पाखंडी
मुझे याद आ गये सुकरात

संपर्क

4-38/2/B, R.P.Dubey Colony,
Serilingampalli, Hyderabad-500019.(A.P.)
Mob-090 308 951 16

मोबाइल
+91-9030895116
+91-9491870715
ई-मेल: nityanand.gayen@gmail.com