जन्म- 28.04.1977 को हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के कोलर नामक गाँव में हुआ
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से विधि स्नातक
वर्तमान में जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन और पांवटा साहिब में वकालत
कवितायेँ विपाशा , आकंठ , सेतु ,सर्जक आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित और आकाशवाणी शिमला से प्रसारित
कुछ कवितायेँ ब्लॉग " आपका साथ , साथ फूलों का " एवम " अजेय " में प्रकाशित
कवि प्रकृति का सजग चितेरा होता है. कब कौन सा दृश्य उसकी कविता का सबब बन जाय यह ठीक-ठीक कोई नहीं बता सकता. कविता ही ऐसी विधा है जिसमें किसी भी अनुभूति को कवि अपने हूनर के दम पर आसानी से पिरो देता है. प्रदीप सैनी एक ऐसे ही युवा कवि हैं जिनकी दृष्टि पैनी है. ‘संवारना’ प्रदीप की एक छोटी और बेहद खूबसूरत कविता है जिसमें वे यह देखते हैं कि किस तरह बाल गूंथते हुए मां अपनी बेटी से एकाकार हो जाती है. दरअसल यह केवल बाल गूंथना ही नहीं, बल्कि पुरानी पीढ़ी का नयी पीढ़ी से ऐक्य है, सृजन और सर्जना से जुड़ा हुआ ऐक्य, जिसकी मार्फ़त बुनी जाती है जीवन की सबसे खूबसूरत कविता. और इसे सहेजने संवारने का दायित्व संभालती हैं महिलायें. जो कहीं माँ, कहीं बेटी, कहीं बहन, कहीं प्रेमिका या पत्नी होती है. बाल संवारने की इस क्रिया के दौरान माँ-बेटी आपस में तमाम तरह की बातें करती हैं. और इस तरह वह अपने अब तक के अनुभवों, अपने अब तक के तमाम हूनर आदि को अपनी बेटी के जीवन के साथ गूंथती चली जा रही है.
आंकड़े केवल संख्याओं की बाजीगरी होते हैं. वे अक्सर हमारे सामने एक ऐसा पर्दा टांग देते हैं जिसके पीछे बहुत कुछ अदृश्य अदेखा रह जाता है. कवि की नजर इन छूट गए लोगों यानी आम जन पर है और वह इनके पक्ष में मजबूती से खडा है. यहीं पर यह कवि औरों से बिलकुल अलग नजर आता है. वह आंकड़ों के सच और बाजार के तिलिस्म से अच्छी तरह परिचित है. और बाजार पर मुग्ध होने वालों को बाजार की असलियत बताता है कि किस तरह बाजार मुग्ध होने वालों का ही चुपके से दाम लगा देता है और उनकी बिक्री के बारे में सोचने लगता है. जबकि मुग्ध होने वाला कुछ जान ही नहीं पाता है. हकीकत तो तब सामने आती है जब सब कुछ समाप्त हो जाता है.
'पहली बार' कुछ इसी तरह के अंदाज वाले पर प्रस्तुत है इस बार युवा कवि प्रदीप सैनी की कवितायें
संवारना
बेटियों के बाल
जब भी संवारती हैं माँयें
संवरता है बहुत कुछ
उस एकांत में
होती है सिर्फ वे दोनों
एक दूसरे से बतियाती हुई
बालों में समा जाता है
सदियों का संचित रहस्य
सूत्र जो इतिहास में कहीं दर्ज नहीं
न किसी पांडुलिपि में या शिलालेख पर
गुँथते चले जाते हैं बालों के साथ
इन्हीं से साधती हैं बेटियाँ जीवन
और फिर गूँथ देती है
बेटियों के बालों में माँ बन कर ।
उधेड़बुन
अमूमन जाड़ों की दस्तक से पहले ही लगा ली जाती है
गर्म कपड़ों को धूप
किसी तेज़ धूप वाले दिन
होना होता है उन्हें जाड़े के खिलाफ मुस्तैद
जाड़ा अबकी बार ज़रा जल्दी आया है
उसके स्वागत में तैयार नहीं थे
गर्म कपड़े
आज उन्हें जल्दबाजी में किया जा रहा तैयार
धूप इतनी भी तेज़ नहीं है
कि उनकी नम उदासी
भाप बन उड़ सके
करीब साल बाद
अल्मारियों के तहखानों से
सुस्ताए हुए से बाहर निकले हैं गर्म कपड़े
नेपथलिन की गंध से सराबोर
चारपाई पर फैले
स्वेटरों के ढेर में
हाथ का बुना हुआ एक स्वेटर
दिखाई दे रहा है
जैसे अपनी मित्र-मंडली में
दिखाई देता हूँगा मैं
अटपटा और असहज
उस स्वेटर को देख
स्मृतियों का धागा
कई जोड़ पार कर
किसी दूसरे युग में
बाँध आता है अपना सिरा
मैं उस पुल पर
हिचकोले लेने लगता हूं
तभी मां उठा लेती वो स्वेटर
कहते हुए कि पुराना हो गया है
इसे उधेड़ कर फिर बुन लेगें
मैं बता न सका कि माँ
यूँ तो उधेड़े हुए स्वेटर की ऊन से भी
बुना जा सकता है
बुने हुए में से झाँकता है लेकिन
पहले वाला अपनी बुनावट के साथ
हर बुनावट के भी होते हैं अपने किस्से
और कभी-कभी तो
किसी खास बुनती की खोज खबर में
निकल आते हैं ऐसे स्वेटर भी
जिन्हें देख कर हम उनमें लौटना चाहते हैं
यह कोई बड़ा रहस्य नहीं
क्यों कुछ स्वेटर
बिना पहने ही भर देते हैं हमें
गर्माहट से
रुह को कंपा देने वाले वक्त में
जब किसी छुटे हुए कुड़े की वजह से
उधड़ता जा रहा है
स्मृतियों का स्वेटर
मैं करता हूँ ईश्वर का धन्यवाद
कि अभी बुने जा रहे हैं
मेरे लिए गरमाहट भरे स्वेटर
मैं किसी भी जाड़े से
रह सकता हूँ बेपरवाह
सिलवटें
माँ
जब भी तह लगाती हो तुम कपड़े
पापा की कमीज़ आते ही
हाथ कस जाते हैं तुम्हारे
ज़ोर से चलाती हो हाथ
पूरे कमीज़ पर बार-बार
तब भी जब वहाँ कुछ नहीं होता
फिर आदत से मजबूर
रख देती हो कमीज़
बाकी कपड़ों से थोड़ा दूर ।
न्यूटन के सिद्धांत
कहे हुए को साबित करने के अंदाज में
वे जोर से एडि़याँ पटकते हुए
कदमताल कर रहे हैं लगातार
भय है इतना व्याप्त
कि धूल तक नहीं उठती
यह दृश्य
बेचैनी से भर रहा है हमें
जिन्हें यकीन है
प्रत्येक क्रिया
प्रतिक्रिया को जन्म देती है
भले ही कई बार ऐसा होने में
युग बीत जाता है
बड़े दारोगा के हुक्म पर
दुनिया का सबसे बड़ा ख़़ुफि़या तंत्र
एलान कर रहा है
न्यूटन के साथ उसके सिद्धांत भी
अब इतिहास हो चुके हैं
उन्हें भूल कर
कदमताल से उत्पन्न संगीत के साथ
सुरक्षित भविष्य के सपने देखो
ऐसा नहीं है लेकिन
यह कदमताल सुनती तीसरी दुनिया के
तमाम देश जानते हैं
दूर देशों से आसमान में फेंकी हुई चीजें
अपने पूरे वजन और भयावहता के साथ
धरती पर ही गिरती हैं
अभी बचा है
गुरुत्वाकर्षण
न्यूटन यूं अप्रासंगिक नहीं हो सकता ।
जो आँकड़ों में दर्ज नहीं
यूँ तो सभी सर्वेक्षण कितने विश्वसनीय होते हैं
इस पर देश में आम राय है
फिर भी वक्त के चेहरे की खोजबीन
कभी-कभी हमें इन अंधेरी गलियों में ले आती है
हम यहाँ बिखरे पड़े आँकड़ों में
टटोलने लगते हैं उसके नैन नक्ष
हांलाँकि यह पड़ताल का एक सुविधाजनक और कामचलाऊ तरीका है
यहाँ हाथ में चुभती है एक तीखी रेखा
जिसके नीचे एक संख्या बंधी है
गरीबी रेखा के नीचे चालीस करोड़
जहाँ से भी गुजरती है ये रेखा
दो भागों में बँट जाता है दृश्य
और यह रेखा तो फिर देश के माथे तक जाती है
रेखा के ठीक ऊपर गिरते सँभलते कितने टिके हैं
उनके बारे में कोई सुराग़ हाथ नहीं लगता
जबकि रेखा पर खड़ा आदमी ही
कायदे से ग़रीब माना जा सकता है
वो जो रेखा के नीचे हैं
उनके लिए कोई उपयुक्त विशेषण फिलहाल आँकड़ों में मौजूद नहीं
सहूलियत ने उन्हें एक संख्या में तब्दील कर दिया है
आँकड़ों के बाहर कविता में
उन्हें किस नाम से पुकारुँ
जो वे सुन सके मेरी आवाज
और मैं उनकी
वे चालीस करोड़ हमारे समाजशास्त्र में ठीक-ठीक क्या हैं
मैं उन्हें कहूँ चालीस करोड़ जन
और वे सुन कर दें जवाब़
क्या इस तरह बिगड़ तो नहीं जाएगी
विकास की कोई अवधारणा
बाज़ार
खुशखबरी ! खुशखबरी ! खुशखबरी !
आइए
आपका स्वागत हैं यहाँ
आप खरीद सकते हैं कुछ भी
चाहें तो आसान किस्तों पर
चलो भाई
बिकने के लिये तैयार हो जाओ
हैरान मत हो
हाँ मैं तुम ही से कह रहा हूँ दोस्त
जिसे सुनकर उछल रहे हो तुम
वह खुशखबरी
हमारे लिए नहीं
हमारे खरीददारों के लिए है ।
भाई जागो
किवाड़ खोलो
देखो कि अनजान कुत्ते ने
तुम्हारी दहलीज़ से
दोस्ती कर ली है
चौक पर कोई नया बुत खड़ा है
जो आने-जाने वालों पर
निगाह रखे है
सामने मील के पत्थर पर
एक अनजान-से नाम के नीचे
शून्य लटक रहा है
भाई जागो
तुम्हारे शहर का नाम बदल गया है।
पता :
चैम्बर - 145 , कोर्ट परिसर ,
पांवटा साहिब ,
जिला - सिरमौर , हिमचल प्रदेश
ई- मेल - pradeepk.saini@yahoo.co.in
मोबाइल - 09418467632