सोमवार, 18 जून 2012

अंजू शर्मा




मैनेजमेंट के क्षेत्र में नौकरी को छोड़ कर परिवार और लेखन को वक़्त देने वाली अंजू कविताएँ और लेख लिखना पसंद करती हैं. इनकी रचनाएँ जनसंदेश टाईम्स, नयी दुनिया, यकीन, सरिता जैसी पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं. अंजू विभिन्न ई-पत्रिकाओं से भी जुडी हुई हैं. kharinews.com, नयी पुरानी हलचल, सृजनगाथा, नव्या आदि में कवितायें और लेख प्रकाशित हुए हैं. अभी हाल ही में बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित स्त्री विषयक काव्य संग्रह औरत हो कर भी सवाल करती है में भी इनकी कवितायें शामिल हैं. वर्तमान में अकादमी आफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के कार्यक्रम डायलोग और लिखावट के आयोजन कैम्पस और कविता और कविता पाठ से बतौर कवि और रिपोर्टर रूप में भी जुडी हुई हैं.          


यह सुखद है कि आज कविता का जो वितान बन रहा है उसमें स्त्रियों का महत्वपूर्ण स्थान है. इन कवियित्रियों ने यह पहचान अपने दम पर बनायी है. अंजू शर्मा एक ऐसा ही नाम है जिन्होंने अपनी कविताओं में स्त्री अस्तित्व के प्रश्न को तलाशने की कोशिश की हैं. चूकि वे इस जीवन से खुद रू-ब-रू हैं अतः यह तलाश उनकी कविताओं में स्वाभाविक रूप से आया है. अंजू को यह भलीभांति मालूम है कि एक स्त्री आज जाग गयी है अब उसे रोक पाना संभव नहीं है. अब वह उन मिथकों की कैद से भी मुक्त हो जाना चाहती है जिसके नाम पर शताब्दियों से ले कर अब तक उसका शोषण किया जाता रहा है. अब वह अपनी पहचान की गाथा खुद अपने नए बिम्बों के साथ लिख रही है. ऐसे बिम्ब जो टटके तो हैं हीं, उनका धरातल भी पुख्ता है.     







तीलियाँ



रहना ही होता है हमें
अनचाहे भी कुछ लोगों के साथ,
जैसे माचिस की डिबिया में रहती हैं
तीलियाँ सटी हुई एक दूसरे के साथ,


प्रत्यक्षतः शांत
और गंभीर
एक दूसरे से चुराते नज़रें पर
देखते हुए हजारो-हज़ार आँखों से,
तलाश में बस एक रगड़ की
और बदल जाने को आतुर एक दानावल में,


भूल जाते हैं कि
तीलियों का धर्म होता है सुलगाना,
चूल्हा या किसी का घर,
खुद कहाँ जानती हैं तीलियाँ,
होती हैं स्वयं में एक सुसुप्त ज्वालामुखी
हरेक तीली,


कब मिलता है अधिकार उन्हें
चुनने का अपना भविष्य
कभी कोई तीली बदलती है पवित्र अग्नि में तो
कोई बदल जाती है लेडी मेकबेथ में.............


एक स्त्री आज जाग गयी है....



(१)


रात की कालिमा कुछ अधिक गहरी थी,
डूबी थी सारी दिशाएं आर्तनाद में,
चक्कर लगा रही थी सब उलटबांसियां,
चिंता में होने लगी थी
तानाशाहों की बैठकें,
बढ़ने लगा था व्यवस्था का रक्तचाप,
घोषित कर दिया जाना था कर्फ्यू,
एक स्त्री आज जाग गयी है.............


(२)


कोने में सर जोड़े खड़े थे
साम-दाम-दंड-भेद,
ऊँची उठने को आतुर थी हर दीवार
ज़र्द होते सूखे पत्तों सी कांपने लगी रूढ़ियाँ,
सुगबुगाहटें बदलने लगीं साजिशों में
क्योंकि वह सहेजना चाहती है थोडा सा प्रेम
खुद के लिए,
सीख रही है आटे में नमक जितनी खुदगर्जी,
कितना अनुचित है ना,
एक स्त्री आज जाग गयी है......




(३)


घूंघट से कलम तक के सफ़र पर निकली
चरित्र के सर्टिफिकेट को नकारती
पाप और पुण्य की
नयी परिभाषा की तलाश में
घूम आती है उस बंजारन की तरह
जिसे हर कबीला पराया लगता है,
तथाकथित अतिक्रमणों की भाषा सीखती वह
आजमा लेना चाहती है
सारे पराक्रम
एक स्त्री आज जाग गयी है.............




(४)


आंचल से लिपटे शिशु से लेकर
लैपटॉप तक को साधती औरत के संग,
जी उठती है कायनात
अपनी समस्त संभावनाओं के साथ,
बेड़ियों का आकर्षण,
बन्धनों का प्रलोभन
बदलते हुए मान्यताओं के घर्षण में
बहा ले जाता है अपनी धार में न जाने
कितनी ही शताब्दियाँ,
तब उभर आते हैं कितने ही नए मानचित्र
संसार के पटल पर,
एक स्त्री आज जाग गयी है.............




(५)


खुली आँखों से देखते हुए अतीत को
मुक्त कर देना चाहती है मिथकों की कैद से
सभी दिव्य व्यक्तित्वों को,
जो जबरन ही कैद कर लिए गए
सौपते हुए जाने कितनी ही अनामंत्रित
अग्निपरीक्षाएं,
हल्का हो जाना चाहती हैं छिटककर
वे सभी पाश
जो सदियों से लपेट कर रखे गए थे
उसके इर्द-गिर्द
अलंकरणों के मानिंद
एक स्त्री आज जाग गयी है...........



औरत और देवी



औरत....
ईश्वर की अनुपम कृति,
जन्मदात्री, सहोदरी, भार्या, पुत्री,
सुशोभित करती रहीं देवी का पद
जिन्हें सौप दिए गए
तमाम शक्तिशाली मंत्रालय,
और वे कुशलता से संभालती रही,
धन, शक्ति, विद्या, अन्न और सृजन,


मंदिरों में सुशोभित हैं वृहद् प्रस्तर प्रतिमाएं,
लदी हुई मालाओं और अलंकृत स्वर्णाभूषणों से,
जिनके पैरों में गिरे जाते हैं ज़माने के खुदा,
वही जिन्होंने घोषित किये नित नए कानून
और बनायीं रोज़ नयी आचार-सहितायें,


शिवालयों की सीढ़ी उतरते ही
घोषित कर दी जाती है
पापिनी नरक का द्वार,
हर पुरुष के पीछे खड़ी छाया
बन जाया करती है हर फसाद की जड़,


धारण करती है अनचाहे गर्भ की तरह
बोझ तमाम कुत्सित लालसाओं
और महत्वकांक्षाओं का,
बन जाती है स्वर्ग-दात्री गंगा,
सोख लिया करती हैं सारे पाप
स्याहीचूस की तरह


या ऐसी दीवार जिस पर लिख दिए जाते हैं
सारे कन्फेशन,
और हो जाते हैं स्वतंत्र
नैतिकता के मठाधीश
करने के लिए नए नए क्रियाकलाप,


या वह टिशु पेपर जिससे पौंछ कर अपनी
गंदगी स्वच्छ और पवित्र हो जाते हैं
समाज और दुनियादारी के ठेकेदार,


और यदि रास्ते की धूल चुभ जाती है
कंकड़ बन के आँखों में,
तो पाट दिए जाते हैं राजमार्ग,
नए नए कानून, आयोग और जांचें भी
खोजती रहती हैं उनके नामालूम नामोनिशान,
जानते हुए भी कि
पत्थर और प्रतिमा के बीच का
अंतर उतना ही है,
जितनी अलग है औरत एक देवी से......

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